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हुड़किया बौल|उत्तराखंडी लोक परम्परा|kumauni lok geet|धान की रोपाई

  • 4 years ago
  • Source: https://youtu.be/27z3JF1W4DY
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उत्तराखंड की महान सांस्कृतिक विरासतों में यहाँ के प्रसिद्ध पारंपरिक लोक गीतों - झोड़ा, चांचरी, छपेली, न्योली,भगनौल , शादी - विवाह में गाऐ जाने वाले शगुन -आंखर ,जागर, व माँ नंन्दा - सुनंन्दा के राज- जात के गीत तथा राजुला -मालूशाही, एवं आषाढ माह में धान की रोपाई व मडुवा गुड़ाई के समय परंम्परा गत लोक वाद्य के साथ हुड़किया बौल,प्राचीन राजा - महाराजाओं की गाथाएँ लोक पर्वों पर गाऐ जाते हैं | उत्तराखंड के प्रसिद्ध लोक परंपराओं व लोक गीतों के साथ जुड़ा है ,यहाँ के जन सरोकारों व सामाजिक ताने -बाने का लोक वाद्य यंत्र हुड़किया बौल | हुड़किया बौल सामाजिक सहभागिता, सहयोग, समरसता एवं आपसी सांगठनिक सामुदायिकता का प्रतीक है|इसके माध्यम से किर्साणों का मनोरंजन व कम समय में अधिक कार्य किया जाता है | हुड़किया बौल का सबसे बड़ा योगदान कहें, तो गाँव / समाज में आपसी मेल मिलाप के साथ जन - सरोकारों को आगे बढाना है | आज के समय में जरूरत है, इस लोक विधा को बचाने की तथा युवा पीढ़ी को इस कृषि कर्म में जुड़ कर स्वावलम्बी बन उत्तराखंड के लोक को समृद्ध करने की | तभी उत्तराखंड का पानी व उत्तराखंड की जवानी, सच्चे मायनों में उत्तराखंड के काम आयेगी | नि :सन्देह पलायन भी रुकेगा |
Among the great cultural heritage of Uttarakhand, the famous traditional folk songs here - Jhoda, Chanchari, Chhapeli, Nyoli, Bhagnaul, Marriage - Shagun - Aankhar, Jodh, and Maa Nanda - Songs sung in marriage - songs and Rajula of Sunanda - In Malushahi, and Ashadh month, the transplanting of paddy and Maduva Gudai in the month of Hudakia Bowel, the saga of the ancient kings - Maharajas are sung on folk festivals with the last folk instrument. It is associated with the famous folk traditions and folk songs of Uttarakhand, the public concerns and social taunts of the people here, Hudakia Bowel. Hudakia is a symbol of social participation, cooperation, harmony and mutual organizational community. Through this, more work is done in the time of entertainment and less time. If you say the biggest contribution of Hudakia Bowel, then in the village / society, public concerns have to be carried forward with mutual reconciliation. In today's time, there is a need to save this folk genre and to enrich the world of Uttarakhand by joining the younger generation in these agricultural deeds. Only then Uttarakhand's youth and Uttarakhand's youth will be used in the true sense of Uttarakhand. Of course, the exodus will also stop.